रविवार, 20 सितंबर 2009

महानता को सलाम

शैलेश कुमार

अपने देश को महान कहना अच्छी बात है. उसकी वंदना करना और भी अच्छी बात है. लेकिन क्या इससे अच्छी बात कुछ और सकती है कि देश के साथ हम भी महान बने - महान अपनी सोच में, महान अपने कर्म में, महान अपनी राजनीति में और महान अपनी नज़रों में?

लेकिन यह महानता आएगी कैसे? अपना दुखरा रोकर? देश कि बर्बादी के लिए दूसरो को दोष देकर? सामने समानता कि बात करके, वक़्त आने पर जात-पात का साथ देकर? वोट देने के बाद चुपचाप बैठकर? या फिर अख़बारों और न्यूज़ चैनल्स में क्राईम के खिलाफ चिल्लाने के बाद, उसी को छुपाने के लिए पैसे खाकर?

इसका भी जवाब देने में बहुत से लोग समय लेंगे, क्योकि उनकी सोच 'मैं' में इतनी डूब गयी है कि उन्हें अब 'हम सब' के लिए सोचने का वक़्त ही नहीं है। आवाज़ उठाने के लिए कड़ोरों कि पोपुलेशन है, पर उनमे से कुछ के ही गले में आवाज़ है. आँखें तो सभी कि खुली हैं, पर सच्चाई को मानने कि ताकत केवल कुछ में ही है.

आखिर क्यों बिहार में बाढ़ और सूखे के बाद भी केंद्र ने मदद देने में विलंब क्या? अगर राज्य सरकार की केंद्र ने नहीं सुनी तो जनता ने क्यों नहीं आवाज़ बुलंद किया? यूपी में मायावती पुतलों पर अरबों लुटती रही। पैसा तो जनता का था, फिर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने का इंतज़ार क्यों किया? खुद क्यों नहीं आवाज़ बुलंद किया? बंगाल से टाटा बाहर जाता रहा, विकास को धक्का लगता रहा, फिर भी जनता ने विरोध क्यों नहीं किया? कश्मीर में आंतकवादी घुसते रहे, जवान उन्हें खदेड़ते रहे, पर स्थानीय जनता ने उन्हें क्यों नहीं खदेडा? विदर्भ में किसान मरते रहे, राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती रहीं, पर उन मरते किसानो को किसी ने अनाज क्यों नहीं दिया? मुंबई हमले में आप मरते रहे, पर आंतकियों का सामना क्यों नहीं क्या?

अनाज के लिए आम आदमी मरता रहा और दो केबिनेट मंत्री हर रोज़ लाखों खर्च करके फाइव स्टार होटल में रहते रहे। जब हंगामा मचा तो सोनिया गाँधी को 'सादगी' का मंत्र याद आया. सोचा कुछ हज़ार बचा कर कड़ोरों का पेट पालेंगे. पर भ्रष्ट्राचार पर नियंत्रण करने के लिए क्या क्या? काला धन वापस लाने के लिए क्या किया? सीबीआई को स्वंत्रता देने के लिए किया क्या? कितने भ्रष्ट और घोटालेबाज मंत्रियों और नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की? राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना को पारदर्शी बनाने के लिए क्या किया? अफज़ल जैसे आंतकियों को सजा दिलाने के लिए क्या किया?

पर हमने क्या ना। वोट डालकर शांति से बैठ गए. राजनीति के गंदे खेल को टीवी पर देखकर मज़ा लेते रहें. काली कमाई की धार में अपना भी हाथ धोते रहें. ट्रैफिक जाम की शिकायत करते रहें, पर टू व्हीलर और फॉर व्हीलर से नीचे उतरने का नाम नहीं लिया? बसों में लटक कर जाते रहें, पर दो मिनट रूककर दूसरी बस का इंतज़ार नहीं किया. लोगों पर नियमों की अनदेखी का आरोप मढ़ते रहें, पर कभी शायद ही खुद नियम का पालन किया. नेताओं को गलियां देते रहें, पर सामने आने पर उनके सामने पैरवी के लिए दुम हिलाते रहें. वन्दे मातरम तो गाते रहें, पर दिल में दर्दे डिस्को चलता रहा. जय हो की तारीफ करते रहें, पर मन में तो कैसे जल्दी से करोड़पति बने, यही चलता रहा.

तो हैं न हम महान? वाह वाह, वाह वाह. अरे आपके लिए नहीं कह रहा हूँ. मैं तो अपने लिए वाह वाह कर रहा हूँ. आखिरकार एक महान इंसान ने आप जैसे करोडों महान इंसानों की महानता को जो ढूंढ़ निकला है.

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

ये वही दिल्ली है जहाँ अगले साल कोमन वे़ल्थ गेम्स आयोजित होने जा रहे हैं.