रविवार, 13 जून 2010

दहकता लावा ह्रदय में है

शैलेश कुमार

कुछ दिनों पहले कुछ सामान खरीदने बाज़ार गया। वहां एक किराने के दुकान पर दुकानदार तथा ग्राहक के बीच चावल के दाम को लेकर बहस चल रही थी। ग्राहक दाम कम करने को बोल रहा था और दुकानदार था कि दाम न कम करने के पीछे की अपनी मजबूरी समझाने में लगा हुआ था। वैसे अब ये नज़ारे देश के हर हिस्से में हर रोज़ देखने को मिल रहे हैं। चावल, गेहूं, दाल, चीनी, टमाटर, हरा धनिया आदि के दाम आसमान छू रहे हैं। सरकार आनाज की पैदावार कम होने की दुहाई देकर मामले से पीछा छुड़ाने में लगी है। पर सच बात तो यह है कि फसलों की पैदावार अच्छी मात्रा में हुई है। कुछ दिनों पूर्व कर्नाटक में कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो बिस्लैया ने भी एक समारोह में यही बात कही। सच्चाई यह है कि देश में अनाज का बहुत बड़ा घोटाला चल रहा है, जिसका पर्दाफाश किये बिना मूल्य वृद्धि को नियंत्रित नहीं किया जा सकता।

कर्नाटक में गत एक वर्ष में चावल की कीमतों में जबरदस्त उछाल आया है। चावल की पैदावार के मामले में देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक आंध्र प्रदेश में भी ऐसी ही स्थिति है। कुछ समय पहले १२ रूपये प्रति किलो के हिसाब से बिकने वाला चावल आज २८ से ३२ रूपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है। आंध्र प्रदेश से कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु आदि राज्यों को चावल भेजा जाता है। लेकिन बंगलौर के एपीएम्सी यार्ड में मौजूद विश्वस्त सूत्रों के अनुसार आंध्र प्रदेश में सरकारी अधिकारियों के संरक्षण में चावल का बहुत बड़ा घोटाला हुआ है। खबर है कि प्रदेश से चावल बड़ी मात्रा में अनुचित रूप से सिंगापूर, मालदीव, मारीशस, थाईलैंड व श्रीलंका आदि देशों में भेजा जा रहा है। यहाँ यही चावल १२० से १४० रूपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जा रहा है। चावल की इस कालाबाजारी से अपराधियों को बड़ा फ़ायदा मिल रहा है। लेकिन इसका खामियाजा भारत की आम जनता भुगत रही है जिसे दुगुने मूल्य में चावल खरीदने को मजबूर होना पड़ा है। इस दशा में उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के लोगों का काम चल जा रहा है। उच्च वर्ग के लोगों के पास इतना पैसा है कि वे बढ़ी हुई कीमतों में भी चावल खरीद लें। अति निम्न वर्ग के लोग भीख मांग के भी काम चला लेते हैं। लेकिन माध्यम वर्ग का क्या जो किसी के सामने हाथ फैलाने में भी हिचकिचाता है?

गुजरात व उत्तर प्रदेश में चीनी को गोदामों में भरकर रखने के कई मामले प्रकाश में आये हैं। जाहिर है कि ऐसे में दाम बढ़ेंगे और इस दौरान असामाजिक तत्व इसे ऊँचे दामों में बेचकर भारी मुनाफा कमाएंगे। सलाद तो जैसे थाली से गायब ही हो गया है। हरा धनिया की कीमत करीब ३०० गुना बढ़ गयी है। टमाटर पहुँच से बाहर है। दाल और तेल भी आम आदमी की पहुँच से बाहर जाता दिख रहा है। ऐसे में आम आदमी करे तो क्या करे? जिस सरकार को उसने चुनकर देश के माई-बाप के पद पर बैठाया है, वही उनका दुश्मन बन गयी है। सत्ता बचाने के लालच और अपना उल्लू सीधा करने की जुगाड़ में जन प्रतिनिधि कानो में रुई डालकर तथा आँखों पर पट्टी बांधकर बैठे हैं।

इन्हें क्या? सरकारी खर्चे पर फाईव स्टार होटलों में जाकर रहते हैं। मुफ्त की रोटी तोड़ते हैं। विमानों में उड़ते हैं। और घोटाले करके पैसा बनाते हैं। पर उस आम जनता का क्या, जो एक वक़्त के खाने के लिए भी तरस कर रह जाती है। राशन की दुकानों में घंटों लाइन में लगी रहती है। इस पर भी उसे कई दिनों तक राशन के लिए दौड़ाया जाता है। पानी के लिए वे रात के दो-तीन बजे तक जागते हैं, और रोड पर लाइन लगाते हैं। रौशनी नहीं रहती है तो मोमबत्ती जलाकर काम करते हैं। जब विरोध प्रदर्शन करते हैं तब भी लाठी और गोली बरसाकर शांत कर दिए जाते हैं। कभी-कभी तो मन में यही सवाल आता है कि क्या ये प्रजातंत्र केवल उनके लिए है जो आर्थिक रूप से समृद्ध हैं?

मत भूलिए की आम आदमी कोई कागज़ का टुकड़ा नहीं जिसे जब चाहे फूंक मारकर गायब कर दिया जाये और जब चाहे मसल दिया जाये। बल्कि आम आदमी वह ताकत है जो एक बार संगठित होकर खड़ा हो जाये तो बड़े से बड़े पहाड़ भी उनके चरणों में नतमस्तक हो जाये। तो फिर ये जनता के नौकर क्या चीज़ हैं?

तुम हमारी चोटियों की बर्फ को यों मत कुरेदो
दहकता लावा ह्रदय में है, जलाकर ख़ाक कर देंगे॥