रविवार, 4 जुलाई 2010

विकास पुरुष का यह कैसा दर्प?


शैलेश कुमार

विकास पुरुष की पदवी हासिल करने के बाद बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के तेवर कुछ ठीक नज़र नहीं आते. कुमार प्रदेश में फिलहाल जो कुछ भी कर रहे हैं वह किसी भी नजरिये से ठीक नहीं है. बड़ी मुश्किल से बिहार को लालू और राबड़ी के जंगल राज से मुक्ति मिली है. गत साढ़े चार वर्षों में प्रदेश ने वास्तव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में तरक्की की है. किन्तु वर्तमान राजनीतिक घटनाक्रम केवल कुमार के लिए ही नहीं बल्कि प्रदेश की जनता के लिए भी नुकसानदायक साबित हो सकता है।

माना जा रहा है कि बिहार में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा नेता वरुण गाँधी के प्रवेश करने से कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) की धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान पहुंचेगा. यही वजह है कि कुमार इन दोनों नेताओं को बिहार से दूर रखने की भरसक कोशिश कर रहे हैं. पर याद रहे, बिहार की जनता अब विकास की भाषा समझती है ना कि धर्म और जातिवाद की. पिछले विधान सभा चुनाव में उसने इस बात को सिद्ध करके भी दिखाया है. इसमें कोई दो राय नहीं कि जातिवाद और धर्म सम्बन्धी भ्रांतियां मिटने में अब भी कई दशक लग जायेंगे. लेकिन नीतीश कुमार का यह सोचना कि मोदी और गाँधी के बिहार आने से मुस्लिम मतदाता उनसे खफा हो जायेंगे, यह गलत है।

नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में जो भी किया हो, उससे बिहार की जनता या फिर वहां के मुस्लिम कोई सरोकार नहीं रखते. यदि इस प्रकार की कोई भी बात लोगों के सामने आती है तो वह और कुछ नहीं बल्कि मीडिया द्वारा परोसा गया वह मसालेदार भोजन है जिसका मकसद केवल टीआरपी कमाना है. बिहार की जनता बेवकूफ नहीं है. उसने वर्तमान सरकार के विकास कार्यों को अपनी आँखों से देखा है. सूचना तकनीकी तथा शिक्षा के दौर से बाहर निकालकर वापस भैंस-बकरियों और गोबर के युग में लौटने का उनका कोई इरादा नहीं है. साफ़-सुथरे तरीके से मतदान कराया जाये तो जीत उसी राजनीतिक दल की होगी जिसका एकमात्र उद्देश्य प्रदेश और उसकी जनता का विकास करना है।

प्रदेश में जदयू और भाजपा के बीच एक अच्छा तालमेल रहा है और इस गठबंधन सरकार ने मिलकर राज्य में विकास को एक नया स्वरुप दिया है. दोनों दलों के रिश्तों में कडवाहट उन राजनीतिक दलों को एक बार फिर से लाभ पहुंचा सकती है जिन्होंने बिहार को पिछड़ेपन के गर्त में डुबोने और समूचे देश में बिहारियों को अपमानित कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी. बिहार को अगले पांच वर्षों के लिए फिर से नीतीश कुमार जैसे मुख्यमंत्री तथा ऐसे ही सरकार की आवश्यकता है. बेकार के मसलों में पड़कर अपनी छवि बिगाड़ने तथा प्रदेश व पार्टी के दुश्मनों को मजबूत बनने का अवसर दिए बिना कुमार को चाहिए कि वे धर्म और जाति की राजनीति में फिलहाल न पड़कर विकास कार्यों पर केवल ध्यान दें. जनता झक मारकर उन्हें पुनः सत्ता में वापस लाएगी।

प्रदेश में विकास झलक रहा है लेकिन मंजिल अब भी बहुत दूर है. बिजली, पानी, बाढ़ और सूखा अब भी प्रदेश की ज्वलंत समस्याओं में से है तथा इनका समाधान निकालने के लिए घटिया राजनीति से परे एक कुशल सरकार की प्रदेश को जरुरत है. नीतीश इस बारे में सोचे और कदम उठायें. गुजरात सरकार द्वारा बाढ़ राहत के लिए दिए गए रकम को लौटने में कोई बुद्धिमानी नहीं है. पैसे वास्तव में अब तक लौटाए नहीं गए हैं. मीडिया ने इसे बढा-चढाकर पेश किया है।

बिहार केंद्र की उपेक्षा का शिकार है. सभी राजनीतिक दलों को इस समय राजनीति का अखाडा खेलने की बजाय एकजुट होकर केंद्र सरकार पर बिहार को मिलने वाले वांछित फंड तथा बिजली जैसी सुविधाएँ मुहैया कराने के लिए दवाब बनाना चाहिए. प्रगतिशील बिहार को कुशल नेतृत्व और विकासपरक योजनाओं की जरुरत है, जाति, धर्म, अलगाववाद व नक्सलवाद पर आधारित राजनीति की नहीं।

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