मंगलवार, 28 अगस्त 2012

निंदा' करें, लेकिन 'विकल्प' भी दें


शैलेश  कुमार


गत दो वर्षों में देश में कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम सामने आये. सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के नेतृत्व में भ्रष्ट्राचार के उन्मूलन के लिए जनलोकपाल को लेकर चलाया आन्दोलन इनमे सबसे प्रमुख था. मेरे ब्लॉग के पाठकों और साथियों ने कहा, भाई कुछ लिखो. देश में इतना कुछ चल रहा है, और तुम्हारी लेखनी खामोश है? बात कुछ जम नहीं रही. मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं था. पर आज जब मेरे पास जवाब है तो मै चार लाइन इस ब्लॉग में लिखने जा रहा हूँ.

इस बात का अंदाज़ा मुझे पहले ही था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ जनांदोलन किस दिशा में जा रहा है और इसका क्या हश्र होगा? चाहता तो जोश में आकर पहले भी आन्दोलन की तारीफों के पुल बांधते हुए कोई अच्छा लेख लिख सकता था. जैसा कि अन्य लोगो ने किया. पहले पलकों पर बिठाया, और आज उतारकर फेंक दिया. वास्तव में इसका सही प्रकार से विश्लेषण किया जाना आवश्यक है क्योंकि हजारे के जनांदोलन ने कहीं-न-कहीं इस अवधारणा को बल प्रदान किया है कि देश अब जाग रहा है. क्रांति की चिंगारी पनप रही है. बस एक सही मार्गदर्शन की तलाश है.


अन्ना की टीम के सदस्यों के बीच पारस्परिक सहयोग के अभाव तथा वैचारिक मतभेदों की वजह जनांदोलन रास्ता भटक गया. खुद हजारे भी यह निर्णय नहीं कर सके कि आखिर वो किस दिशा में जाना चाहते हैं और उनकी रणनीति क्या होगी? अंत में वही हुआ, जो बहुत से लोग नहीं चाहते थे. हजारे ने राजनीतिक राह पकड़ने की घोषणा कर दी. उनके इस निर्णय की वजह से उनसे जुड़े कई लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया और उनके खिलाफ हो गए, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि हजारे ने ऐसा करके एक नया मार्ग प्रशस्त कर दिया. एक ऐसा मार्ग, जिसे आमतौर पर लोग घिनौना करार देते हैं. लोकतंत्र के अंतर्गत खुद राजनीति रूपी इस मार्ग का हिस्सा होकर भी इसी की निंदा करते हैं.

आप माने या ना माने, लेकिन इस सच्चाई से कतई मुह नहीं मोड़ सकते कि गंदे कीचड़ को साफ़ करने के लिए आपको खुद कीचड़ में उतरना ही पड़ेगा और कपड़ों को गन्दा करना ही पड़ेगा. हजारे ने भी कुछ ऐसा ही करने का आह्वान किया है. इसमें कोई शक नहीं कि हजारे और उनकी टीम के पास दूरदर्शिता का अभाव है. जनांदोलन को शुरुआती सफलता मिलने के बाद जिस प्रकार से देश की जनता का बड़े पैमाने पर समर्थन पाने का स्वर्णिम मौका उन्होंने अपने हाथ से जाने दिया और गलतियाँ-पे-गलतियाँ करते रहे, उससे यह बात तो स्पष्ट हो गयी कि टीम को चिंतन करने की जरुरत है. एक कुशल योजना बनाकर, चरणबद्ध तरीके से मुहिम चलने की जरुरत है.


स्थिति ऐसी है कि बिना राजनीति में कदम रखे अब आन्दोलन चलेगा नहीं. दूसरे शब्दों में कहें तो राजनीतिक हथियार को अपनाये बिना अब आन्दोलन की सार्थकता नहीं रह जाएगी. भ्रष्टाचार ने जिस प्रकार से पांव फैलाये हैं और जिस प्रकार से लगभग सभी दलों के वरिष्ठ नेताओं का नाम इनमे सामने आया है, उसे देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इनके सत्ता में रहते कभी इन्हें उनके पापों की सजा नहीं मिल पायेगी. सबके सामने भले ही वे एक दूसरे की टांग खीचते नज़र आते हों, किन्तु हकीकत यही है कि सभी एक ही थाली के चटटे-बटटे हैं. इन्हें सबक सिखाने के लिए इन्हें राजनीति में चुनौती देनी की जरुरत है. तभी वांछित परिणाम मिलने की कोई गुंजाईश है.

बेहतर ये होगा कि लोग सोचने का नजरिया बदले. विशेषकर ऐसे युवा जो वास्तव में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करना चाहते हैं और देश की तरक्की में योगदान देना चाहते हैं, वे देश की राजनीतिक व्यवस्था को समझे और राजनीतिक जनांदोलन का हिस्सा बने. अन्ना हजारे की निंदा करके कुछ हासिल नहीं होगा. ये मत भूलिए कि जितना उन्होंने किया वह भी आसान नहीं था. वर्षों से लोगो ने आन्दोलन की बात की, पर कितनों ने आख़िरकार नेतृत्व किया? सबने देश की निंदा की, पर कितनों ने आखिर इसे सुधारने का प्रयत्न किया? निंदा करना तभी शोभा देता है, जब साथ में हम उसका विकल्प भी दे. अन्यथा यह नकारात्मक सन्देश देती है और देश को पतन की ओर ले जाने में हमें भी जिम्मेदार बनाती है.
वक़्त आ गया है कि देश के कोने-कोने में बैठे ऐसे सभी लोग जो खुद को ईमानदार मानते हैं और देश की सफाई करना चाहते हैं, वे हजारे की राजनीतिक मुहिम में शामिल हों. स्थानीय स्तर पर मेहनत करें. लोगों के बीच जागरूकता पैदा करें. चर्चा करें, राजनीति की जानकारी लें. चुनाव लड़ने की रणनीति बनाये. एक जैसी सोच रखने वाले और बदलाव लाने की ख्वाहिश रखने वाले ऐसे लोग जिस दिन सत्ता में आ गए, उस दिन जनांदोलन सफल होगा. यह काम आसान नहीं है. कई बार मुह की खानी पड़ेगी, पर कभी तो सफलता मिलेगी. जरुरी नहीं कि अन्ना हजारे के नेतृत्व में ही लड़े, लेकिन ये नहीं भूले कि उन्होंने रास्ता दिखाया है और उस पर चलने का साहस भी.

देश में कुछ अच्छा होने के आसार दिख रहें हैं. हम कुछ शुभ करने जा रहे हैं. तो चलिए इसी बात पर मुह मीठा हो जाये. :-)

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