कब टूटेगी सिंहासन की बेहोशी?
शैलेश कुमार
मित्रों पूछता हूँ मैं आज तुमसे
कब लाओगे बुद्धि अपनी ठिकाने पर?
क्या-क्या गुल खिलाओगे और
अब तो रख दी मुंबई भी निशाने पर।
खोकर भी सैकडों सपूतों को
टूटी नहीं तुम्हारी खामोशी।
जल रहा है देश आज पर
कब टूटेगी सिंहासन की बेहोशी?
सत्ता की लालसा लिए हो चित्त में
ध्रितराष्ट्र हैं मौन स्वयम सूत के हित में।
वरना वो जहरीली आँखें फोरवा देते
अब तक अफज़ल पर कुत्ते छुड़वा देते।
कहते हैं वे भारत के रक्षक हैं
पर अफज़ल जैसों के संरक्षक हैं।
बेशक सारे भारत का सर झुक जाए
उनकी कोशिश है ये फंसी रुक जाए।
क्या अब भी निर्णय लेगी सरकार
और फंसी पर चढेंगे ये गद्दार?
क्या उठेगा देश अब एक-साथ
डाले मराठी-बिहारी हाथों-में-हाथ?
एक बार फिर दहते स्वर में इन्कलाब गाना होगा
फंसी का तख्ता जेलों से संसद तक लाना होगा।
दिलों में वंदे मातरम को जगाना होगा
बुलंद इरादों से आतंक को हराना होगा।