आपको पैदा करने की ये कैसी सजा ?
शैलेश कुमार
उनके पास तो अब केवल सिसकियाँ ही बची हैं. छुप-छुप के आंसू बहाने के सिवा उनके पास और बचा ही क्या है? कहने को बस एक ही सदस्य कम हुआ हो, पर परिवार तो पूरा बिखर गया ना. किसी एक परिवार की कहानी नहीं है ये. देश भर में लाखों ऐसे परिवार हैं जिनके जिगर के टुकड़े कभी नक्सल, तो कभी आंतकवादी, कभी गुंडे, तो कभी खुद पुलिस का शिकार होकर हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा ले लिए. हाँ दो-चार दिन के लिए मीडिया ने उन्हें मरने के बाद हीरो बनाया, मरणोपरांत सरकार ने मेडल देकर सम्मानित किया. लेकिन उसके बाद क्या हुआ? इतिहास के पन्नों में कहीं दब गए वे. पता नहीं किस लाइब्रेरी में और कहाँ दीमक खाती किताबों में दब गयी उनकी वीरता की गाथाएं.
पर जिस देश, जिस प्रदेश, जिस जनता के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया, उन्हें क्या मिला इसके बदले? बोफोर्स और चारा घोटाला? बेरोजगारी और भुखमरी? सूखा और बाढ़? अपहरण और बलात्कार? हत्या और डकैती? महंगाई और प्याज के आंसू? या फिर किसानों की आत्महत्या और उसे भुनाकर सत्ता में काबिज होते चटोरे जनप्रतिनिधि?
दशकों से बस एक ही बात कहते आ रहे हैं, नक्सल देश के लिए खतरा है, आतंकवाद देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. भ्रष्ट्राचार हर बुराई की जड़ है. मंत्री जी अब तो छोटा बच्चा भी टीवी चैनलों पर आपकी इन बातों को सुनकर समझ गया है कि ये सभी चीज़ें बुरी है, मुसीबत है. पर सिर्फ बोलते ही रहेंगे, या कुछकरेंगे भी? करेंगे तो कब करेंगे, तब जब सौ में से अस्सी परिवार का सपूत इनकी आड़ में पिस चुका होगा? या फिर तब, जब लोगों की अर्थी को कन्धा देने के लिए उनके परिवार का एक भी सम्बन्धी जिन्दा नहीं होगा? या फिर आप उस दिन का इंतज़ार कर रहे हैं जब टुकडों में बँटा होगा यह देश, और उसकी नीलामी हो रही होगी?
अरे बंद कीजिये ये घिसे-पिटे भाषण, झूठी सहानभूति और झूठे वादे. आप क्या सोचते हैं, कुछ हथियारबंद पुलिस वालों को जंगल में उतार कर आप नक्सलवाद को मिटा देंगे? कारगिल की पहाडियों पर चंद सैनिकों को चढाकर आतंकवाद को मिटा देंगे? दंगे फसाद के समय रैपिड एक्शन फोर्स को बुलाकर दंगे रुकवा देंगे? या फिर नरेगा जैसी भ्रस्ट स्कीम को लाकर किसानों को आत्महत्या करने से रोक लेंगे? नहीं, आप ऐसा नहीं कर सकते. ये आपको भी पता है.
फिर क्या चाहते हैं आप? जनता की भलाई का झूठा नाटक कर उनका विश्वाश जीतना? उनके पैसों पे फाइव स्टार होटलों में रहकर ऐश करना? या फिर अपना उल्लू सीधा करने के लिए देश को ही बेच देना? माफ़ कीजियेगा, थोड़े कटु शब्दों का प्रयोग किया है मैंने, पर ये तो बतला दीजिये इसमें से कितना परसेंट गलत है? बताइए, बताइए...
हे सरकार, प्रभु, हमारे माई-बाप, अगर हम देशवासियों की आपको इतनी ही फिक्र है तो मत चलवाइए जंगलो में गोली. बंगाल से सबक मिल ही गया होगा. जाइये उनकी समस्याओं से रूबरू होइए और उसे हल कीजिये. नक्सलवाद अपने आप समाप्त हो जायेगा. हेलीकॉप्टर से यात्रा करने पर तो बाढ़ में भी आपको हर जगह पानी का लेवल एक जैसा ही दिखता होगा, जरा नीचे उतरकर उस पानी में चलकर उसकी गहराई को तो नापिये. लोगों को दो वक़्त की रोटी का जुगार करा दीजिये, असंतोष मिट जायेगा. ये मिटा तो आतंकवाद भी कम होगा. नरेगा को चलने दीजिये, पर कभी ये तो देखिये की उसका लाभ वास्तव में किसानो और ग्रामीणों को मिल भी पा रहा है या नहीं? फिर देखिये किसानो की आत्महत्या कैसे कम होती है?
मंत्री जी भाषण तो आप लिखा हुआ पढ़ देते हैं, पर कभी ये तो जानने की कोशिश कीजिये की जो आई.ए.एस अधिकारी आपकी जी-हुजूरी बजाकर आपके लिए यह भाषण लिख रहा है, उसने अपनी पढाई के दौरान क्या-क्या कष्ट झेला है? राजनीति को गन्दा बनाने से पहले एक बार ये तो सोचिये कि कितने लाख लोगों कि हाय आपको लगने वाली है? देश को बेचने से पहले एक बार यह तो सोच लीजिये कि उसका कसूर क्या है? क्या यही कि उसने आप जैसे नेता को पैदा किया?
... आपको पैदा करने की ये कैसी सजा है?
उनके पास तो अब केवल सिसकियाँ ही बची हैं. छुप-छुप के आंसू बहाने के सिवा उनके पास और बचा ही क्या है? कहने को बस एक ही सदस्य कम हुआ हो, पर परिवार तो पूरा बिखर गया ना. किसी एक परिवार की कहानी नहीं है ये. देश भर में लाखों ऐसे परिवार हैं जिनके जिगर के टुकड़े कभी नक्सल, तो कभी आंतकवादी, कभी गुंडे, तो कभी खुद पुलिस का शिकार होकर हमेशा के लिए इस दुनिया से विदा ले लिए. हाँ दो-चार दिन के लिए मीडिया ने उन्हें मरने के बाद हीरो बनाया, मरणोपरांत सरकार ने मेडल देकर सम्मानित किया. लेकिन उसके बाद क्या हुआ? इतिहास के पन्नों में कहीं दब गए वे. पता नहीं किस लाइब्रेरी में और कहाँ दीमक खाती किताबों में दब गयी उनकी वीरता की गाथाएं.
पर जिस देश, जिस प्रदेश, जिस जनता के लिए उन्होंने अपना बलिदान दिया, उन्हें क्या मिला इसके बदले? बोफोर्स और चारा घोटाला? बेरोजगारी और भुखमरी? सूखा और बाढ़? अपहरण और बलात्कार? हत्या और डकैती? महंगाई और प्याज के आंसू? या फिर किसानों की आत्महत्या और उसे भुनाकर सत्ता में काबिज होते चटोरे जनप्रतिनिधि?
दशकों से बस एक ही बात कहते आ रहे हैं, नक्सल देश के लिए खतरा है, आतंकवाद देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. भ्रष्ट्राचार हर बुराई की जड़ है. मंत्री जी अब तो छोटा बच्चा भी टीवी चैनलों पर आपकी इन बातों को सुनकर समझ गया है कि ये सभी चीज़ें बुरी है, मुसीबत है. पर सिर्फ बोलते ही रहेंगे, या कुछकरेंगे भी? करेंगे तो कब करेंगे, तब जब सौ में से अस्सी परिवार का सपूत इनकी आड़ में पिस चुका होगा? या फिर तब, जब लोगों की अर्थी को कन्धा देने के लिए उनके परिवार का एक भी सम्बन्धी जिन्दा नहीं होगा? या फिर आप उस दिन का इंतज़ार कर रहे हैं जब टुकडों में बँटा होगा यह देश, और उसकी नीलामी हो रही होगी?
अरे बंद कीजिये ये घिसे-पिटे भाषण, झूठी सहानभूति और झूठे वादे. आप क्या सोचते हैं, कुछ हथियारबंद पुलिस वालों को जंगल में उतार कर आप नक्सलवाद को मिटा देंगे? कारगिल की पहाडियों पर चंद सैनिकों को चढाकर आतंकवाद को मिटा देंगे? दंगे फसाद के समय रैपिड एक्शन फोर्स को बुलाकर दंगे रुकवा देंगे? या फिर नरेगा जैसी भ्रस्ट स्कीम को लाकर किसानों को आत्महत्या करने से रोक लेंगे? नहीं, आप ऐसा नहीं कर सकते. ये आपको भी पता है.
फिर क्या चाहते हैं आप? जनता की भलाई का झूठा नाटक कर उनका विश्वाश जीतना? उनके पैसों पे फाइव स्टार होटलों में रहकर ऐश करना? या फिर अपना उल्लू सीधा करने के लिए देश को ही बेच देना? माफ़ कीजियेगा, थोड़े कटु शब्दों का प्रयोग किया है मैंने, पर ये तो बतला दीजिये इसमें से कितना परसेंट गलत है? बताइए, बताइए...
हे सरकार, प्रभु, हमारे माई-बाप, अगर हम देशवासियों की आपको इतनी ही फिक्र है तो मत चलवाइए जंगलो में गोली. बंगाल से सबक मिल ही गया होगा. जाइये उनकी समस्याओं से रूबरू होइए और उसे हल कीजिये. नक्सलवाद अपने आप समाप्त हो जायेगा. हेलीकॉप्टर से यात्रा करने पर तो बाढ़ में भी आपको हर जगह पानी का लेवल एक जैसा ही दिखता होगा, जरा नीचे उतरकर उस पानी में चलकर उसकी गहराई को तो नापिये. लोगों को दो वक़्त की रोटी का जुगार करा दीजिये, असंतोष मिट जायेगा. ये मिटा तो आतंकवाद भी कम होगा. नरेगा को चलने दीजिये, पर कभी ये तो देखिये की उसका लाभ वास्तव में किसानो और ग्रामीणों को मिल भी पा रहा है या नहीं? फिर देखिये किसानो की आत्महत्या कैसे कम होती है?
मंत्री जी भाषण तो आप लिखा हुआ पढ़ देते हैं, पर कभी ये तो जानने की कोशिश कीजिये की जो आई.ए.एस अधिकारी आपकी जी-हुजूरी बजाकर आपके लिए यह भाषण लिख रहा है, उसने अपनी पढाई के दौरान क्या-क्या कष्ट झेला है? राजनीति को गन्दा बनाने से पहले एक बार ये तो सोचिये कि कितने लाख लोगों कि हाय आपको लगने वाली है? देश को बेचने से पहले एक बार यह तो सोच लीजिये कि उसका कसूर क्या है? क्या यही कि उसने आप जैसे नेता को पैदा किया?
... आपको पैदा करने की ये कैसी सजा है?
1 टिप्पणी:
Well written. Loved it!
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