शाहरुख़ का अपमान
- बस 'एक बार' ही होता है
दिवस था ये आज़ादी का
लहरा तिरंगा आसमान में।
अमर शहीदों की यादों में।
समाचार में बस आज़ादी
और कुछ ना दीखता था।
रंग बिरंगे आज़ादी का
केवल पर्व झलकता था।
पर बदली तस्वीर अचानक
शाहरुख़ अब टीवी पर था।
तिरंगा लहराता आकाश में
अब कहीं न दीखता था।
भुला दिया शहीदों को अपने
अब तो शाहरुख़ ही सब था।
समर्पण, त्याग और बलिदान पे
शाहरुख़ का इंतज़ार बस भारी था।
कौन दिखाए पी एम् का भाषण
शाहरुख़ जो संकट में था।
कौन सुनाये वीरों की गाथा
शाहरुख़ से कहाँ फुर्सत था?
स्वाधीनता दिवस मानाने का
ये कैसा तरीका था?
पूछा मैंने जब पत्रकार से
जावाब मिला कुछ ऐसा था।
आज़ादी का दिवस हरेक साल में
हर एक बार आता है।
पर शाहरुख़ का ऐसा अपमान तो
बस एक बार ही होता है।
उत्तर सुन उस पत्रकार का
हिल उठा मैं अन्दर से।
किसे दोष दूँ ये सोचके
सिसकने लगा मैं एकदम से।
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