शनिवार, 8 नवंबर 2008

राजनीतिक आतंकवाद के निशाने पर देश

शैलेश
कुमार

आतंकवाद के डर से पूरा देश थर - थर कांप रहा है। दहशत इस प्रकार छाई हुई है की लोगों को अब घर से बहार निकलकर भीड़-भाड़ वाले इलाके में जाने से भी डर लगता है। खैर ये तो हुई उस आतंकवाद की बात जो देश के बाहर की शक्तियां अंजाम दे रही हैं हमारे देश में। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है की उससे भी भयानक और कई खौफनाक आतंकवाद का दूसरा चेहरा अपने ही देश में कुछ देशद्रोहियों की छत्रछाया में पल रहा है। इस आतंकवाद का नाम है राजनीतिक आतंकवाद जो कि गोली और बारूद वाले आतंकवाद से कहीं शक्तिशाली है।

हमारा देश जो कि अपने पास विश्व के सबसे बड़े संविधान होने का दावा करता है, जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र कहलाने पर गर्व करता है, उसकी सच्चाई यह है अन्दर-ही-अंदर वह उतना ही खोखला है। इस देश कि राजनीति अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है। राजनेताओं के व्यवहार को देखकर तो ऐसा लगता है कि अभी-अभी पेट से बहार निकले हैं और जैसे पिल्ले रोटी के तोकडे के लिए आपस में लड़ते हैं न, वैसे ही वे भी सत्ता के छीना-झपटी कर रहे हैं। अब तक तो यह लडाई केवल उग्र बातों और थोडी बहुत गलियों तक ही सीमित थी। पर अब तो एक-दूसरे का कालर पकड़ना, थप्पर मारना, घुसे बरसना और धक्का देकर ज़मीन की धूल चाटना भी इसमे जुड़ गया है। शायद अब वह दिन दूर नही जब पिस्तौल और रायफल भी खुले आम हाथों में लेकर वे सत्ता की इस लडाई को लडेंगे।

हम कौन थे, क्या हो गए, और क्या होंगे अभी?
आओ विचारे आज मिल, ये समस्याएं सभी

नई पार्टी बनाने के बाद सत्ता सूख से दूर रहने के बाद राज ठाकरे ने अंततः उत्तर भारतीयों पर हमला कर मराठियों के प्रति अपने प्रेम को दिखाने की चेष्टा की ताकि अगले चुनाव में फ़ायदा हो जाए। ठाकरे की इस हरकत का जवाब देने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश में जबरदस्त प्रदर्शन हुए। अब भला हमारे मेधावी राजनेता जिन्होंने वोट बैंक निर्माण में गोल्ड मैडल जीता हुआ है, इस परिस्थिति का फ़ायदा उठाने में कैसे पीछे रह सकते थे? बस शुरू हो गई लडाई, अपने आप को जनता का सच्चा हमदर्द बताने की। नीतिश ने अपने सांसदों से इस्तीफा देने को कहा तो लालू ने नहले पे दहला मरते हुए संसद क्या बिहार में अपने विधायकों के भी इस्तीफे की पेशकश कर डाली। अब जब नीतिश सरकार के डोलने की स्थिति आई तो वे इसे लालू की चाल बताने लगे सरकार को गिराने की। और लालू यादव जिन्होंने रातों-रात बूटा सिंह के बिहार के राज्यपाल होने के दौरान नीतिश सरकार को गिराया था, महाराष्ट्र सरकार को बर्खास्त कर वह राष्ट्रपति शासन लगाने में कोई दिलचस्पी नही दिखाई। फ़ायदा कम रहे हैं ये राजनेता और आंसू बहा रही है आम जनता। वो जनता जो कभी धरम, कभी जात-पांत, तो कभी क्षेत्रवाद तो कभी भाषावाद के नाम पर शूली पर चढ़ती आई है। जो इन सत्तालोलुप नेताओं की सत्ता प्राप्ति मुहीम में हमेशा से पिसती आई है। वो आम जनता जो घुट-घुट कर जी रही है और अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है केवल इन राजनीतिक दरिंदों की वजह से। ऐसे में अगर इसे राजनीतिक आतंकवाद की संज्ञा न दे तो यह और क्या हो सकता है?

गोली और बम तो खैर एक बार में जान ले लेते हैं, पर ये राजनीतिक आतंकी तो हर पर हमारा खून चूस रहे हैं। अभी जब छः राज्यों में विधान सभा चुनाव होने जा रहे हैं तो इन पिल्लों की खीचा-तीनी, एक-दूसरे पर खीज, और लातों और घूसों की बरसात आप खुले आम टेलिविज़न चैनल्स पर देख सकते हैं। इनके लिए टिकेट ज्यादा जरुरी है। और सत्ता में आने की बाद अय्याशियाँ मानना। क्या आम जनता, क्या विकास, इन्हे पहले अपना बड़ा सा हाथी वाला पेट भरने से फुर्सत मिले तब तो।

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वे कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती

अफ़सोस तो तब आता है जब हम खामोश बैठ जाते हैं। ये राजनीतिक आतंकी हमारे घरों तक में घुस कर आतंक फैला रहे हैं, पैसों के लिए बाहरी दुश्मनों को आमंत्रण देकर हमारा सूख-चैन लुटा रहे हैं और हम चुप-चाप नज़ारा देख रहे हैं। क्या हम उस दिन का इंतज़ार कर रहे हैं जब वे केवल सरकार ही नही हमारे घर, उसकी संपत्ति और बहु-बेटियों को भी हथियाने पर भी उतारू हो गायेंगे, और हम एक कोने में दुबककर सिसकियाँ लेंगे?

दोस्त तूने हमे बहुत आजमा लिया,
वह दिन खुदा करे कि तुझे आजमायें हम

मत भूलिए कि राजनीतिक आतंकवाद को शह देने का काम हम कर रहे हैं। हमारा छोटा सा सामूहिक प्रयास इस आतंकवाद को जड़ से उखड फेंक सकता है। और अगर राजनीतिक आतंकवाद पर हमने काबू पा लिया तो यकीन मानिये कोई भी आतंकवाद, दंगा और बाहरी शक्तियां हमारा कुछ नही bigaad sakti। इस लोकतंत्र का अस्तित्व बचने की जिम्मेदारी हमारी है। सब-कुछ हमारे हाथों में है, बस जरुरत है ख़ुद पर भरोसे की और एक संकल्प की कि राजनीतिक आतंक और नही सह सकते हम, उखड फेकेंगे अब हम इसे।