न्यूज़ चैनल बदलते-बदलते अचानक नज़र पड़ी एक ब्रेकिंग न्यूज़ पर. जो मोटे-मोटे अक्षरों में चैनलों द्वारा टेलिविज़न स्क्रीन पर परोसी जा रही थी. खबर थी के जम्मू और कश्मीर में प्रीपेड मोबाइल कनेक्शन पर सरकार पाबन्दी लगाने जा रही है. पहले तो मन चिढ सा गया कि आखिर ये कैसा निर्णय है जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ेगा. लेकिन जब
इस पर विचार किया तो लगा कि भले ही यह एक कठोर निर्णय हो, पर आतंकवाद पर लगाम कसने की दिशा में यह एक सराहनीय कदम है.
जम्मू की निवासी अंशु कौल जब प्रदेश में आतंकी गतिविधियों के बारे में बात करती हैं तो उनका चेहरा गुस्से से तमतमा उठता है, जैसे किसी प्रतिशोध की आग में जल रही हो. अंशु इस पाबन्दी का समर्थन करती हुई कहती हैं कि सरकार को तो यह निर्णय काफी पहले ही ले लेना चाहिए था. अंशु की बात में दम तो है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि उत्तर प्रदेश में जब स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया गया था तो उस समय उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी मोबाइल नेटवर्क की वजह से ही झेलनी पड़ी थी. चलिए, अब तो कम से कम टेक्नोलॉजी इतनी विकसित हो ही चुकी हैकि आज के समय में मोबाइल नेटवर्क का सामना करना कोई बड़ी बात नहीं रह गयी है. पर फिर भी, टेलिकॉम कंपनियों ने प्रीपेड कनेक्शन देने में जिस प्रकार से लापरवाही दिखाई है, उसने घाटी में सुरक्षा बलों की मुसीबतों को जरुर बढा दिया है.
अगर इस प्रकरण में थोडा गौर फ़रमाया जाये तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि देश में टेलिकॉम कंपनियों के उभरने के दौरान ल
गभग सभी सरकारों ने लापरवाही दिखाई है. यहाँ पर फ़िलहाल सुर्खियों में छाए टेलिकॉम सम्बन्धी घोटालों और आरोप-प्रत्यारोपों को अलग रखकर ही बात करें तो अच्छा होगा. नहीं तो यह एक ऐसा मुद्दा है, जो बहुत से लोगों को अपनी चपेट में ले सकती है.
पाबन्दी लगाने का निर्णय काफी हद तक ठीक है. पर क्या ऐसी परिस्थिति को उत्पन्न होने से रोका नहीं जा सकता था? यदि सरकार टेलिकॉम कंपनियों पर मजबूती से अपना शिकंजा जमाये रखती तो शायद आज ऐसी नौबत ही नहीं आती. यदि टेलिकॉम कम्पनियाँ बांटे गए प्रीपेड कनेक्शन का ठीक तरीके से हिसाब नहीं रख रही है और एक आदमी के नाम पर कई कनेक्शन जारी किये गए हैं, तो यह एक बहुत बड़ी लापरवाही है और इसमें सरकार का लचीलापन साफ-साफ झलकता है.
माफ़ कीजियेगा मेरा यहाँ पर ऐसी चूक के लिए केवल टेलिकॉम कंपनियों या सरकार को दोषी ठहराने का कोई इरादा नहीं है. मैं पूछता हूँ कश्मीर की उस आवाम से जो प्रीपेड कनेक्शन पर पाबन्दी लगाने के बाद भड़क उठी है और सड़कों पर आ गयी है. जब आपको मालूम है कि आपको अपने नाम पर ज्यादा कनेक्शन नहीं रखने चाहिए तो आपने ऐसा किया ही क्यों? आखिर क्यों नहीं आपने कम्पनियों को अपने बारे में सही जानकारी उपल
ब्ध करवाई? क्यों आपने उन कम्पनियों को धोखा दिया या फिर उन्हें बेवकूफ बनाकर उनका फ़ायदा उठाया? आपकी आड़ में आतंकियों ने इसका फ़ायदा उठाया. आपको ही अपना शिकार बनाते रहे, पर आप अपनी इस अनुशासनहीनता का चुपचाप मज़ा लेते रहे और कभी अपना मुह भी नहीं खोला. लेकिन आज पाबन्दी लगने के बाद आपके गले में आवाज़ आ गयी है. दोस्तों सिर्फ प्रीपेड कनेक्शन पर पाबन्दी लगायी गई है, पोस्ट पेड अभी भी चलता रहेगा. तो इसमें इतना भड़कने वाली कौन सी बात है?
वैसे देखा जाये तो टेलिकॉम कम्पनियों ने केवल कश्मीर में ही नहीं बल्कि देश के लगभग हिस्सों में ऐसी ही लापरवाही दिखाई है. प्रीपेड कनेक्शन का सही लेखा-जोखा अभी भी उनके पास उपलब्ध नहीं है. सूत्रों से पता चला है कि दिल्ली में तो कुछ साल प
हले प्रीपेड सिम कार्ड्स ऐसे ही बाँट दिए गए थे. आवेदन पत्र आदि तो बाद में भरवाए गए थे. बंगलोर में भी कुछ समय पहले कुछ ऐसा ही वाकया देखने और सुनने को मिला. मुंबई जैसा संवेदनशील माना जाने वाला शहर भी इससे अछूता नहीं रहा है. जाहिर सी बात है कि सरकार को अब इन शहरों और प्रदेशों की ओर भी ध्यान देने की जरुरत है. पर कश्मीर में यह ज्यादा जरुरी इसीलिए बन गया था कि वहां हुर्रियत जैसे कई अलगाववादी संगठन हैं, आतंकवादी दस्ते हैं. ऐसे में उन पर लगाम कसने के लिए यह बेहद जरुरी बन गया था.
कश्मीर के मेरे मित्र आमिर बशीर और सैयद ताहिर बुखारी की मैं उन बातों को अपने जेहन से निकल नहीं सकता जिसमे उन्होंने आतंकियों की क्रूरता का आँखों देखा हाल सुनाया था मुझे. अपनों को अपनी आँखों के सामने लुटने और खोने का गम झलकता था उसमें. आज भी कश्मीर से मेरी मुह बोली बहन नेहा धर की वो बातें मेरे कानों में गूंजती हैं कि अपने २२ साल की उम्र में भी कभी वो धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर की सुन्दरता को इस खौफ से ठीक से नहीं देख पाई कि कहीं आंतकवादी न आ धमकें. वो कहती थी कि जब एक बार घर से कोई बाहर निकल गया तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वो सही सलामत घर लौट आएगा. तो अब आप ही बताइए अगर ऐसे आतंकियों के विरुद्ध अपनी मुहिम को थोडा और धारदार बनाने के लिए सरकार ने प्रीपेड कनेक्शन पर पाबन्दी लगाने का यह फैसला लिया है तो इसमें क्या गलत है? क्या वहां की आवाम अपनी और अपनी जान-माल की सुरक्षा के लिए थोडी और कुर्बानी नहीं दे सकती?
अंत में सरकार से यही कहना चाहूँगा: देर आये, पर दुरुस्त आये.
संपर्क:
shaileshfeatures@gmail.com

जम्मू की निवासी अंशु कौल जब प्रदेश में आतंकी गतिविधियों के बारे में बात करती हैं तो उनका चेहरा गुस्से से तमतमा उठता है, जैसे किसी प्रतिशोध की आग में जल रही हो. अंशु इस पाबन्दी का समर्थन करती हुई कहती हैं कि सरकार को तो यह निर्णय काफी पहले ही ले लेना चाहिए था. अंशु की बात में दम तो है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि उत्तर प्रदेश में जब स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) का गठन किया गया था तो उस समय उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी मोबाइल नेटवर्क की वजह से ही झेलनी पड़ी थी. चलिए, अब तो कम से कम टेक्नोलॉजी इतनी विकसित हो ही चुकी हैकि आज के समय में मोबाइल नेटवर्क का सामना करना कोई बड़ी बात नहीं रह गयी है. पर फिर भी, टेलिकॉम कंपनियों ने प्रीपेड कनेक्शन देने में जिस प्रकार से लापरवाही दिखाई है, उसने घाटी में सुरक्षा बलों की मुसीबतों को जरुर बढा दिया है.
अगर इस प्रकरण में थोडा गौर फ़रमाया जाये तो एक बात स्पष्ट हो जाती है कि देश में टेलिकॉम कंपनियों के उभरने के दौरान ल

पाबन्दी लगाने का निर्णय काफी हद तक ठीक है. पर क्या ऐसी परिस्थिति को उत्पन्न होने से रोका नहीं जा सकता था? यदि सरकार टेलिकॉम कंपनियों पर मजबूती से अपना शिकंजा जमाये रखती तो शायद आज ऐसी नौबत ही नहीं आती. यदि टेलिकॉम कम्पनियाँ बांटे गए प्रीपेड कनेक्शन का ठीक तरीके से हिसाब नहीं रख रही है और एक आदमी के नाम पर कई कनेक्शन जारी किये गए हैं, तो यह एक बहुत बड़ी लापरवाही है और इसमें सरकार का लचीलापन साफ-साफ झलकता है.
माफ़ कीजियेगा मेरा यहाँ पर ऐसी चूक के लिए केवल टेलिकॉम कंपनियों या सरकार को दोषी ठहराने का कोई इरादा नहीं है. मैं पूछता हूँ कश्मीर की उस आवाम से जो प्रीपेड कनेक्शन पर पाबन्दी लगाने के बाद भड़क उठी है और सड़कों पर आ गयी है. जब आपको मालूम है कि आपको अपने नाम पर ज्यादा कनेक्शन नहीं रखने चाहिए तो आपने ऐसा किया ही क्यों? आखिर क्यों नहीं आपने कम्पनियों को अपने बारे में सही जानकारी उपल

वैसे देखा जाये तो टेलिकॉम कम्पनियों ने केवल कश्मीर में ही नहीं बल्कि देश के लगभग हिस्सों में ऐसी ही लापरवाही दिखाई है. प्रीपेड कनेक्शन का सही लेखा-जोखा अभी भी उनके पास उपलब्ध नहीं है. सूत्रों से पता चला है कि दिल्ली में तो कुछ साल प

कश्मीर के मेरे मित्र आमिर बशीर और सैयद ताहिर बुखारी की मैं उन बातों को अपने जेहन से निकल नहीं सकता जिसमे उन्होंने आतंकियों की क्रूरता का आँखों देखा हाल सुनाया था मुझे. अपनों को अपनी आँखों के सामने लुटने और खोने का गम झलकता था उसमें. आज भी कश्मीर से मेरी मुह बोली बहन नेहा धर की वो बातें मेरे कानों में गूंजती हैं कि अपने २२ साल की उम्र में भी कभी वो धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले कश्मीर की सुन्दरता को इस खौफ से ठीक से नहीं देख पाई कि कहीं आंतकवादी न आ धमकें. वो कहती थी कि जब एक बार घर से कोई बाहर निकल गया तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वो सही सलामत घर लौट आएगा. तो अब आप ही बताइए अगर ऐसे आतंकियों के विरुद्ध अपनी मुहिम को थोडा और धारदार बनाने के लिए सरकार ने प्रीपेड कनेक्शन पर पाबन्दी लगाने का यह फैसला लिया है तो इसमें क्या गलत है? क्या वहां की आवाम अपनी और अपनी जान-माल की सुरक्षा के लिए थोडी और कुर्बानी नहीं दे सकती?
अंत में सरकार से यही कहना चाहूँगा: देर आये, पर दुरुस्त आये.
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