मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

जिंदगी जीने का भी वक्त नहीं
शैलेश कुमार
खुशी इतनी की भरा है दामन
पर हसने को थोड़ा वक्त नहीं।
दिन-रात दौड़ रही दुनिया ऐसे
जिंदगी जीने का भी वक्त नही।
जिम्मेदारियों का अहसास तो है
पर निभाने की ताकत नहीं।
दिन-रात दौलत कमाकर भी
संतुष्टि की चाहत नहीं।
उड़ने की ख्वाहिश तो है
पर पंख उगाने की चाहत नहीं।
बुलंदी के सितारे छूकर भी
मन को मिली राहत नहीं।
जगते अरमान दिलों में हैं
पर झाँकने का वक्त नहीं।
सिसकियाँ ले लेकर भी
आंसू बहने का वक्त नहीं।
एहसास तो है माँ की लोरी का
पर माँ को माँ कहने का वक्त नहीं।
रिश्तों को तो सब मार चुके
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक्त नहीं.

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