बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

मंगलमय या खूनी यात्रा?


शैलेश
कुमार


आपकी यात्रा मंगलमय हो. देश के करोडों लोग जो रेल से सफ़र करते हैं, भारतीय रेल द्वारा जगह-जगह प्रयोग की गई इस युक्ति से वाकिफ होंगे. लेकिन एक के बाद एक लगातार हो रही रेल दुर्घटनाओं ने अब यह सवालिया निशान पैदा कर दिया है कि भारतीय रेल की यात्रा वास्तव में कितनी मंगलमय है?

कहने को भारतीय रेलवे विश्व की सबसे बड़ी रेलवे में गिनी जाती है. रेलवे के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में कुल रेलवे रूट 63,327 किलोमीटर का है। इसमें 4,982 किलोमीटर बड़ी लाइन, 10,621 किलोमीटर मीटर गेज और 2,886 किलोमीटर छोटी लाइन है। कुल 16 जोन तथा 68 मंडलों में बंटा रेलवे प्रतिदिन करीब 9,500 ट्रेन चलाता है। एक करोड़ 70 लाख से भी ज्यादा लोग रोजाना ट्रेन में सफर करते हैं। इनमें से करीब 4,000 ट्रेनें लंबी दूरी की हैं।

इतना ही नहीं, अब तो रेलवे बुलेट ट्रेन चलने का सपना देख रहा है. देश के भूतपूर्व रेलवे मंत्री लालू प्रसाद यादव जापान की यात्रा से वापस लौटने के बाद बड़े जोश में थे, इसी समय उन्होंने भारत में बुलेट ट्रेन चलने का ऐलान भी कर डाला था. लेकिन, भारतीय रेलवे जो कि 40-60 किमी की रफ़्तार से भी चलने वाली ट्रेनों को दुर्घटना से नहीं बचा पा रहा है, क्या उससे 130-150 किमी की रफ़्तार से चलने वाली बुलेट ट्रेन को सही सलामत चलने की उम्मीद की जा सकती है?

दुर्घटनाओं से तो जैसे भारतीय रेल का गहरा नाता रहा है. कोई भी साल ऐसा नहीं जाता जब रेल दुर्घटना में सैकडों लोग अपनी जान नहीं गंवाते. कुछ समय पहले उडीसा के झाझपुर में घटी रेल दुर्घटना की यादें अभी लोगों के जेहन से निकली भी नहीं थी कि बुधवार तडके सुबह मथुरा के समीप हुए रेल दुर्घटना ने लोगों को फिर से झझकोर कर रख दिया. मथुरा से आठ किलोमीटर दूर खड़ी मेवाड़ एक्सप्रेस को पीछे से तेज़ रफ़्तार से आ रही गोवा संपर्क क्रांति ने ज़ोरदार टक्कड़ मार दी. नतीजतन मेवाड़ एक्सप्रेस की पिछली बोगी पूरी तरह से चकनाचूर हो गई.

घंटों तक समाचार चैनलों पर यही खबर चलती रही कि गोवा एक्सप्रेस के ड्राईवर ने सिग्नल तोड़ दिया और यह घटना घट गई. लेकिन इन्ही समाचार चैनलों पर प्रसारित होने के घंटों पूर्व जो जानकारी मेरे एक साथी पत्रकार मित्र से मुझे प्राप्त हुई, और जो एक समाचार पत्र ने अपनी वेबसाइट पर घटना के कुछ मिनटों के बाद प्रकाशित किया था, वह चौकाने वाली थी. पता चला कि कुछ आरोपियों को पेशगी के लिए ट्रेन से ले जाया जा रहा था. उनके भागने के वजह से पुलिस वालों ने ट्रेन की जंजीर खीचकर उसे रोक दिया. जिसकी वजह से यह दुर्घटना घटी. अब तक तीनो पुलिस वालों को निलंबित कर दिया गया है.

लेकिन यहाँ पर गौर फरमाने वाली बात यह है कि जब ट्रेन की जंजीर खीचकर मेवाड़ एक्सप्रेस को रोका गया तो इसकी जानकारी ट्रेन के ड्राईवर ने स्टेशन मास्टर को क्यों नहीं दी? इस छोटी सी चूक की वजह से इतनी बड़ी दुर्घटना घट गयी. जाहिर सी बात है, जाँच के आदेश दे दिए गए हैं. पर भाई, आज तक केवल आदेश ही तो दिए गए हैं, कमेटियां बनाई गयी हैं. इनमे से कितनी कमेटियों की रिपोर्ट सामने आई है अब तक? कितनो को सजा मिल पाई है?

इतनी बड़ी दुर्घटना घट गयी, पर घंटों तक रेल मंत्री की तरफ से कोई बयान नहीं आया था. शायद वो आराम फार्म रही थीं. उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री अवसर को भुनाने के लिए नास्ता और चाय लेकर आराम से घटनास्थल पर पहुच गए और मृतकों के परिवारजनों के लिए दस लाख रूपये का मुआवजा और एक सदस्य के लिए नौकरी की तत्काल मांग कर डाली. सोचा शायद लोगों की सहानभूति अगले चुनाव में उनका वोट बैंक बढा देगी. सांसद मोहम्मद अजहरुद्दीन जब वहां पहुचे तो ऐसा लगा जैसे अभी भी क्रिकेट का जूनून उनके सर से उतरा नहीं है. काला चश्मा और टोपी अभी भी उनके साथ थी. बोलने के स्टाइल से लगता था जैसे कोई कप्तान मैच हारने के बाद मैदान में कमेंटेटर के सामने अफ़सोस जाता रहा हो.

मीडिया वालो की तो जैसे चांदी हो गयी. दे दनादन चैनल वालों ने मोटे-मोटे अक्षरों में ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर दुर्घटना के बारे में बताना शुरू किया. कोई 50, तो कोई 20, तो कोई 10 के मरने की आशंका जाता रहा था. एक प्रतिष्ठित समाचार चैनल ने फ़ोन पर एक यात्री की बाईट ले ली. अंत में पता चल कि वो मोतरमा तो कई बोगी दूर आराम से एसी कोच में बैठी थी. जब दोपहर होने को आई तब जाकर कैदियों के भागने और जंजीर खीचने वाली बात चैनलों पर आनी शुरू हुई.

इस लेख के माध्यम से मेरा रेलवे के प्रति गुस्सा निकलने का कोई मकसद नहीं है. मै तो बस इतना चाहता हूँ कि रेलवे लोगों के जीवन की कीमत पहचाने. यात्रियों की सुरक्षा का केवल दावा न करे, बल्कि सही मायने में उन्हें सुरक्षा प्रदान करे. अब मै आपको बताता हूँ. बिहार के भागलपुर में तक़रीबन दो साल पहले एक जीर्ण-शीर्ण पुल के दानापुर-हावडा एक्सप्रेस के डिब्बों पर गिर जाने से सैकडों यात्रियों की मौत हो गयी थी. उसके बाद भी रेलवे ने शायद कोई सबक नहीं लिया. बंगलोर के कृष्णराज पुरम रेलवे स्टेशन के समीप अभी भी एक छोटा सा पुराना पुल जो कि नए फ्लाईओवर बन जाने के बाद अब उपयोग में नहीं है, उसे अभी तक ढहाया नहीं गया है. पिछले 6 वर्षों से ट्रेनें उसी पुल के नीचे से सरसराती हुई निकल रही है. कभी भी ट्रेन की कम्पन से यह पुल उनकी बोगी पर गिर सकता है. पर रेलवे प्रशासन का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.

देश भर में इस तरह की कई खामियां हैं, जिन्हें स्थानीय स्तर पर सुधारे जाने की आवश्यकता है. वक़्त रहते यदि रेलवे ने आँखें नहीं खोली तो रेलवे की मंगलमय यात्रा पर भला कौन विश्वास करेगा. यात्रियों को चाहिए सुरक्षा, समय-पालन न कि दुर्घटनाएं और डकैतियां. देश की जनता और रेलवे को मिलजुल कर सुरक्षा बढ़ने की दिशा में प्रयास करने चाहिए. नहीं तो बुलेट ट्रेन का सपना मुंगेरीलाल का सपना बनकर ही रह जायेगा.

3 टिप्‍पणियां:

wali's world ने कहा…

hi Shailesh nikki,
Congrats for ur esteemed efforts in bringing about railways neglegency. I would also like to quote my personal exp with the railways neglegancy.
While going on board Patna-Bangalore city Sanghamitra Exp on 19th feb,2006 the S-9 boggie was looted near Manikpur near Allahabad in the wee hours. I was also threatened but escaped somehow.Since then there has been an unseen fear in me once i board any train. As if, i am going on my last journey.More than making money and running Dorento expresses thay should make thay arrange for securities in all coaches and arrange for doors just like ATMs where only authorised ticket holders may zoom in. I hope our plaes just like before wont fall on deaf years now.
Thanking You!

Md Waliur Rahman
Sinhgad College,kondhwa, Pune-48.
Mba-Final Yr.
09730443851
rahmanwali6@gmail.com

Shailesh Kumar ने कहा…

Dear Wali,

Thanks for your comment on my article. I agree with your opinion about the security in Indian Rilway.

I think railway has been facing such dacoity incidents time-to-time. And there is not much effort by Railway or the police personnel to put a full stop in it.

It has been increasing the morale of the anti-social elements and they have been proving there existence and their strength in the form of dacoity, looting and snatching in trains.

I think, instaed of thinkging about bullet and comfortable trains, railway should plan for safer journey. Indian railway can learn a lesson from Metro rail in our country whose primary focus is on safety first...

Hope our efforts bring a difference.

Thank you

Regards,

Shailesh Kumar

Aadi ने कहा…

MANAV KI ZINDGI KI KIMAT KITNI SASTI HAI!