सोमवार, 22 मार्च 2010

जहाँ चाह, वहां राह


शैलेश कुमार

कई बार हम ज़िन्दगी को अपने इशारे पर नचाते हैं और कई बार ज़िन्दगी हमें अपने इशारे पर नचा लेती है. और जब ज़िन्दगी के इशारे पर हम नाचते हैं तो खुद पर वश नहीं होता. बस नाचते जाते हैं, नाचते जाते हैं.

बंगलोर से दिल्ली जाकर मैंने भी ज़िन्दगी को अपने इशारे पर खूब नचाया. दिन-रात एक करके जो चाहा, वही किया. लेकिन ज़िन्दगी ने आख़िरकार अपना रंग दिखाया और कहा कि चल बहुत नचा लिया तूने मुझे, अब तेरी बारी है. वही हुआ. अचानक दिल्ली छोड़ बंगलोर वापस जाने की योजना बनी और आज करीब डेढ़ माह के बाद मुझे थोड़ी फुर्सत मिली है कि मैं अपना ब्लॉग लिख सकूँ.

बंगलोर वापस आकर फिर से अपना काम शुरू करना आसान नहीं रहा. कुछ लोग तो मेरे आने से फूले नहीं समां रहे थे लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्हें मुझे वापस देखकर जबरदस्त झटका लगा. पर शायद यह मेरी सकारात्मक सोच का ही नतीजा है कि मैंने सब कुछ हल्के में लिया और इस उम्मीद के साथ फिर से अपना काम शुरू किया कि सब कुछ मेरे मिशन जर्नलिज्म का हिस्सा है.

आज करीब एक महीने होने को आये. शुरूआती कुछ दिनों के परिश्रम के बाद फल मिलने लगा है, पर उन दिनों को याद कर शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है. रास्ते अभी भी आसान नहीं है, लेकिन उसे आसान बनाना है. और वो आसान बनेगा केवल सकारात्मक सोच और सतत परिश्रम से.

सुबह घर से निकलते वक़्त मालूम नहीं होता कि आज की मंजिल कहाँ है? बस मिलेगी या नहीं, अगर मिलेगी तो कब मिलेगी और कितनी देर में मिलेगी? बस में बैठने को जगह मिली तो ठीक है, नहीं तो खड़े-खड़े ही मंजिल तक जाना है. बस बदलनी पड़ी तो दौड़ कर दूसरे बस में भी चढ़ना है. भोजन का कोई समय और ठिकाना मालूम नहीं. जहाँ मिले फुर्सत के कुछ क्षण वहीं कर ली पेट पूजा. और चल पड़े अगली मंजिल की ओर.

रात में जब नौ बजे के आसपास ऑफिस से निकलो तो सबसे बड़ी चिंता बस को लेकर होती है. पता होता है कि दो-ढाई घंटे से पहले घर नहीं पहुचुंगा पर दिल को तसल्ली देता रहता हूँ कि बस बदल-बदल के बहुत जल्दी पहुँच जाऊंगा. खुद को दी गई यही तसल्ली बहुत ताकत देती है. मोबाइल पर दोस्तों से एसएम्एस करते और बाहर के दृश्यों को निहारते वक़्त कट जाता है. देर रात घर पहुंचकर एक ख़ुशी होती है कि दिन अच्छा रहा, काम अच्छा हुआ.

उच्च शिक्षा पर मुझे रिपोर्टिंग करनी होती है. आजकल विश्वविद्यालय आना-जाना चल रहा है. हर रोज़ विश्वविद्यालय के जंगलों के बीच के सुनसान रास्ते से मीलों पैदल चलता हूँ कड़ी धूप में. मन और शरीर जवाब देने लगता है. लेकिन जैसे ही मिशन जर्नलिज्म का लक्ष्य दिमाग आता है, सब कुछ आसान बन जाता है.

आजकल दोस्तों से बात करने के लिए ज्यादा वक़्त नहीं निकल पाता. इन्टरनेट पर चैट नहीं कर पाता. वे शिकायत करते हैं, पर मजबूरी है. पहले साप्ताहिक अवकाश बुद्धवार हुआ करता था. अब इतवार हो गया है. ऐसे में इतवार के आने का इंतज़ार रहता है कि कुछ समय अनाथाश्रम जाकर बच्चों के साथ गुजारूं. मुझे नहीं लगता कि मैंने कभी उनकी कोई खास मदद की है, पर उनसे एक अटूट रिश्ता जुड़ गया है.

अभी तक ज़िन्दगी के इशारे को नहीं समझ पाया हूँ. बस उसके इशारों पर नाच रहा हूँ. अपना काम कर रहा हूँ. भावना, स्नेह, प्रेम, ईर्ष्या, दोस्ती-यारी, सबको एक ताक पर रखकर सिर्फ काम में लगा हूँ इस उम्मीद के साथ कि मिशन जनालिज्म का लक्ष्य पूरा होगा. इसके माध्यम से उन्हें इन्साफ मिलेगा जो इसके लिए तरस गए हैं.

पिछले एक माह के कार्यकाल के दौडान कुछ लोगों को मेरे प्रकाशित लेख से इन्साफ मिला है, मुझे ख़ुशी है उनकी, पर ये बहुत छोटी सी सफलता है, जिसे वृहद् रूप देना है. रास्ते कभी आसान नहीं होते, पर दिल को तसल्ली देकर और खुद पर विश्वास करके सब कुछ हासिल किया जा सकता है.

वक़्त आ गया है कि ज़िन्दगी को एक बार फिर से अपने इशारे पर नचाऊं. हर बड़े काम की शुरुआत छोटे से ही होती है. और लोगों ने तो अकेले ही कितने सारे मुकाम प्राप्त किये हैं. मेरे साथ तो फिर भी बहुत से लोग हैं. धन्यवाद करता हूँ मैं हर उन लोगों का जिन्होंने अब तक मेरा साथ दिया है, मुझे प्रोत्साहित किया है और जिनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला है. साथ ही मैं उन लोगों का भी धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने मेरा पैर खीचने की कोशिश की है. उन्होंने मुझे जितना पीछे खीचा है, उतना ही दम लगाकर मैंने आगे बढ़ने की कोशिश की है.

मंजिल तब दूर होती है जब वो हमारी आँखों से ओझिल हो जाती है. पर जब वो साफ दिखती रहे तो उसे पाने से कोई नहीं रोक सकता क्योंकि उसे देखकर हम अपना रास्ता लगातार तैयार करते रहते हैं. शायद अभी और भी मेहनत की दरकार है. और इसके लिए खुद को तैयार करना होगा. ज़िन्दगी को अपने इशारे पर फिर से नचाना होगा....

मंजिल मिलै या न मिलै इसका गम नहीं
मंजिल की जुस्तजू में मेरा कारवां तो है.

6 टिप्‍पणियां:

sunil kataria ने कहा…

bahut khoob shailesh !!
meri duaa hai ki tum aise hi apne mission ki or chalte raho !!
khuda khair kare

wali's world ने कहा…

well done Nikki ur this blog has overwhelmed me to the fullest hats off 2 urs enthusiasm ! keep up d gud work... miss u

Wali
09762281806
08956397504
09162658602
09730443851
rahmanwali6@gmail.com

wali's world ने कहा…

i would also advide u not to over run ur body . Keep enriching with good supply of food and also good food. Take care macha

Wali

Dharmendra Gaur ने कहा…

well done shailsh...go ahead...logon ki bataon par mat jao unko jo karna hai karne do. crry on wd ur misson ...

Ravi Kant ने कहा…

jindgi hain mushkilo bhari, paar use karna hain , milenge raston me badhayein , unse kya darna hain, har rukawaton se tumhe ladna hain, yaad rakho tumhe door us choti par chadhna hain, TUMHARE SATH MERI SUBHKAMNAYE HAIN .MAY GOD GIVE YU STRENTH .GD BLESS YOU

Sashi Kumar ने कहा…

आपको बधाई और शुभकामनाएं !