सोमवार, 20 अक्टूबर 2008

राजनीति की आड़ में देश को तोड़ने को कोशिश

शैलेश कुमार

वह देश जो अनेकता में एकता के लिए विश्व विख्यात है आज उसकी वह एकता खतरे में पड़ी मालूम होती है। स्वतंत्रता के ६२ सालों के बाद आज देश भाषा, जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर बंटता नज़र आ रहा है। देश से पहले राज्यों के हितों को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। संविधान में राज्यों की बीच जिस एकता की बात कही गई है वह महाराष्ट्र में पिछले कुछ समय से हो रही घटनाओं के बाद खटाई में पड़ती दिखाई पड़ रही है।

महाराष्ट्र नव सेना के सुप्रीमो राज ठाकरे ने जैसे यह ठान लिया है की अब वे उत्तर भारतीयों को महाराष्ट्र में नही रहने देंगे। उनकी पार्टी शिवसेना के साथ मिलकर मुंबई में उत्पात मचा रही है। उत्तर भारतीयों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। रेलवे की परीक्षा देने आए बिहार और उत्तर प्रदेश के छात्रों को बेरहमी से पीटा गया। पहले भी बिहारी मजदूरों को क्रूरतापूर्वक निशाना बना कर उन पर जानलेवा हमला बोला गया। देश के चहेते अभिनेता अमिताभ बच्चन के खिलाफ भी उन्होंने असम्मान दर्शाया। राज ठाकरे ने मुंबई को अपने बाप की संपत्ति तक कह डाला। और अब वो कह रहे हैं की अगर पुलिस दम है तो वे उन्हें गिरफ्तार करके दिखाए।

ऐसे में राज ठाकरे को एक विद्रोही, देशद्रोही या फ़िर आतंकवादी कहा जाए तो मुझे नही लगता की इसमे कोई ग़लत है। आश्चर्य होता है यह देखकर की इतना सब कुछ होने के बाद राज ठाकरे खुले आम घूम रहा है और लोगो को लगातार धमकियाँ दिए जा रहा है। केन्द्र की कांग्रेस सरकार जो की भाजपा शाशित राज्यों में गिरिजाघरों पर हमले के बाद गला फार कर चिल्लाने लगी, क्या महाराष्ट्र में राज ठाकरे द्वारा उत्तर भारतीयों पर धाये जा रहे जुल्म की आवाज़ उसे सुनाई नही पर रही है। क्या इस मामले में वह बहरी बन गई है। सिर्फ़ इसलिए की राज्य में कांग्रेस की सरकार है?

शर्मा आनी चनिये इस सरकार को जो की राजनीती का घटिया खेल खेलने से बाज नही आ रही। और राज ठाकरे जो अपने आप को मराठियों का रक्षक बता रहे हैं, क्या जनता नही जानती की उन्हें महाराष्ट्र का कितना ख्याल है और अपनी राजनीती का कितना? किसे मुर्ख बनाए की कोशिश कर रहे हैं वो? एक नेता जो की मानवता की परिभाषा को नही समझ सकता वो क्या किसी की रक्षा कर सकता है?

मुझे ग़लत मत समझना। इस लेख के द्वारा मेरी यह कतई कोशिश नही है की मैं उत्तर भारतीयों का पक्ष लेकर किसी राज्य विशेष या व्यक्ति विशेष की आलोचना करूँ। किसी भी राज्य के द्वारा अपने राज्य के वाशिंदों की रक्षा करना जरुरी है। और इसमें कुछ भी ग़लत नही है। लेकिन उसका भी एक तौर-तरीका होता है। शान्ति से बैठकर और विचार-विमर्श कर किसी भी समस्या का हल निकला जा सकता है। इस प्रकार से हिंसक गतिविधियों को अपनाकर और खुल-आम दादागिरी दिखाकर आप कुछ हासिल नही कर सकते।

भारत अपनी शान्ति के लिए ख्यात रहा है। एकता इसकी सबसे बडी पूंजी है। इसके साथ खिलवाड़ करने वाली को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। अगर सरकार राज ठाकरे को सजा दिलाने में विफल है तो जनता को अब आवाज़ उठानी होगी। जब हमारे प्रतिनिधि हमारी सुध न ले तो फ़ैसला जनता के हाथों में ही छोड़ देना चाहिए। उठाइए आवाज़ और हिला दीजिये राज ठाकरे की कुर्सी को, जिसे की सबसे शक्तिशाली होने का झूठा अभिमान चढा है।

कोई टिप्पणी नहीं: