शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2008

जब लगाई है आग तो रोते हो क्यों?

शैलेश कुमार

मुंबई में बिहारियों के साथ जो कुछ भी हुआ उसकी आग में बिहार तो जल ही रहा है पर उससे यह देश भी अछूता नही रहा अब। रेलों को निशाना बनाने से केवल बिहार ही नही बल्कि पूरे देश की यातायात व्यवस्था चरमरा गई है। छात्रों पर नियंत्रण पाना पुलिस के लिए कठिन ही नही नामुमकिन बन पड़ा है। राज्य सरकार, केन्द्र सरकार, विपक्षी पार्टियाँ, मीडिया सभी रो रहे है, चिल्ला रहे हैं। पर यह रोना चिल्लाना क्यों ? यह आग आख़िर आप लोगों ने ही तो लगाई है ना!

पूछता हूँ मैं रेल मंत्री से - कहाँ सो रहे थे आप जब मुंबई में रेलवे की परीक्षा देने गए बिहारी छात्रों पर राज ठाकरे के आदमी डंडे और पत्थर बरसा रहे थे। वे छात्र जिन्होंने रेलवे में किसी प्रकार से अपना भविष्य बनाकर अपने माता-पिता का सहारा बनना चाहते थे, उनके सपनों की पिटाई कर उसे ऐसा अधमरा कर दिया गया की आने वाले लंबे समय तक उनके मन में सिहरन बरक़रार रहेगी। जब आपको पता था की मुंबई में राज ठाकरे ने बिहारियों और उत्तर भारतीयों के खिलाफ मुहीम जारी कर राखी है तो आपने छात्रों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त कदम क्यों नही उठाये? इसका हम क्या मतलब निकले - आपने जन बुझ कर राज से पंगा लेकर छात्रों की जान को खतरे में डाला। और अब जब पुरा बिहार प्रतिशोध की आग में जल रहा है तब भी आपने उसे शांत करने में कोई दिलचस्पी नही दिखाई। आपने यह कह कर पल्ला झार लिया की यह राज्य सरकार का काम है। छोरिये रेल मंत्रालय को, लेकिन एक राजनेता और बिहार से संबध रखने के नाते तो आपको शान्ति कायम करने की कोशिश करनी चाहिए थी।

और नीतिश कुमार जी, आप तो अपने आप को बिहार वासियों का संरक्षक कहते हैं। फिर आप इस हिंसा को शांत करने की बजाई केन्द्र सरकार और रेल मंत्रालय को जिम्मेदार ठहराने में अपना समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं? यह संपत्ति जिसका नुक्सान हो रहा है वह केवल रेलवे की नही इस देश और आपके राज्य की भी है। एक नागरिक के तौर पर यह आपकी भी संपत्ति है। आपने सर्वदलीय बैठक तो बुला ली पर आपने आरोप-प्रत्यारोप करने के अलावे और क्या किया? अरे थोडी देर के लिए तो घटिया राजनीती का मोह त्याग कर बहार आइये और इस आग में झुलस रहे छात्रों की जिंदगी बचने की कोशिश कीजिये।

केन्द्र की यू पी ऐ सरकार से मैं पूछना चाहूँगा आपने कर्णाटक और उड़ीसा में हिंसा होने पर राष्ट्रपति शाशन लगाने की सिफारिश करने में बड़े जोश से हिस्सा लिया, पर महाराष्ट्र में आपका यह जोश कहा चला गया? क्या सिर्फ़ इसलिए की वहां कांग्रेस की सरकार है?

अंत में मीडिया से मैं पूछना चाहूँगा आपने किस हद तक अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह किया? क्या राज ठाकरे के भड़काऊ भाषणों को अखबारों में छापना और चैनलों पर दिखाना जरुरी था। अगर थोड़े पैसे कम कमा लेते आप तो आपका क्या बुरा हो जाता? क्या देश एकता भी अब आपके लिए कोई मायने नही रखती? और अब जब राज्य में लगातार हिंसा की वारदातें हो रही हैं तो कितनी बार आपने शान्ति बनाये रखने की अपील की है? सही बात है भाई, आपको जली हुए रेल और राज ठाकरे के आसपास घुमने से फुर्सत मिले तब तो।

और देशवासियों से उनका ही एक भाई होने के नाते मैं यही कहूँगा - आप तो होशियार हैं। नेताओं के दाव पेंच आप भी अब भली भांति समझने लगे हैं। फिर क्यों उनकी भड़काई हुए बातों पर जान लेने और देने पर उतारू हो जाते हैं। नहीं कहता आपसे गाँधी बन जाने को, पर थोड़ा सोच विचार कर सुख और शान्ति तो बना के रखी जा सकती है ना। गुस्सा होना स्वाभाविक है, पर स्थिति को भी समझिये और जिसने गलती की है उसे अपने आप को मिली ताकत से सबक सिखाईये। क्यों निर्दोषों को इस आग में जला रहे और जल रहे हैं आप? थोड़ा सोचिये, और कदम उठाईये।

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

blog ki duniya men aapka bhi swagat hai...

बेनामी ने कहा…

bahut acche dear !!!!1

बेनामी ने कहा…

bahut badiaa

बेनामी ने कहा…

ek achi soch hai.....bus aage badhte raho....ek koshish ki jarurat hai....