रविवार, 8 नवंबर 2009

अब न खोना होश "जोश" में

शैलेश कुमार
नई दिल्ली

आस्ट्रेलिया को अगर विश्व चैम्पियन कहा जाता है तो इसके पीछे एक बहुत बड़ी वजह है. ऐसी बात नहीं है कि उसे हराया नहीं जा सकता. लेकिन इस टीम के पास कुछ ऐसा है जो भारत या दूसरी अन्य टीमों के पास अभी भी नहीं है. और ये एक ऐसी चीज़ है जो उसे आसानी से कभी भी हारने नहीं देती. वो है इसके सभी खिलाडियों के अन्दर जीतने की चाहत और हर कीमत पर अपना सौ प्रतिशत प्रदर्शन देने की इच्छाशक्ति.

रविवार को गुवहाटी में आस्ट्रेलिया और भारत के बीच खेले गए एकदिवसीय मैच में यह साफ़ तौर पर झलक रहा था. आस्ट्रेलिया का उत्साह तो सीरिज में 3-२ की बढ़त बनाये रखने से चरम पर था ही पर भारतीय खेमे में भी इस मैच को हर हाल में जीतने की ललक होने की उम्मीद लगाई जा रही थी. पर मैदान में तो इसका उल्टा होते ही नज़र आया. सहवाग के खूबसूरत छक्के ने भले ही एक पल के लिए करोडों क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में एक रोमांचक मैच होने की उम्मीद जगा दी, पर यह उम्मीद दूसरे ही पल धराशाई हो गयी. एक के बाद एक लगातार पांच दिगज्जों की पैवेलियन में वापसी ने भारत की कमर तोड़ कर रख दी.

सचिन तेंदुलकर जिन्होंने, पिछले मैच में कई इतिहास रचने के बावजूद रात भर सो नहीं पाए थे, शायद रविवार को खेली गई अपनी पारी के बाद कई दिनों तक चैन से नहीं सो पाए. क्रिकेट का भगवान कहे जाने वाले सचिन रमेश तेंदुलकर का क्रिकेट में 20 साल का अनुभव भी आज भारतीय बल्लेबाजी को संकट से न उबार सका. विज्ञापनों और रैंप पे अपना जोश दिखाने वाले युवराज का जोश भी रविवार को मैदान में ठंडा नज़र आया. मज़े की बात तो ये रही कि पिछले कई मैचों से ख़राब फॉर्म से जूझ रहे रविन्द्र जडेजा को थोडी बहुत अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हुआ. वह भी यही कहा जायेगा कि जीवनदान ले लेकर उनकी पारी आगे बढती रही. हरभजन सिंह जिन्हें अब ऑ़लराउंडर के तौर पर प्रमोट करने की बात चलने लगी थी, उन्होंने भी बस आने-जाने की ही रस्म निभाई. सिर्फ प्रवीण कुमार की बल्लेबाजी में वास्तव में संघर्ष करने का जूनून नज़र आया.

कुल मिलकर टीम में सही प्लानिंग का पूरा अभाव देखा गया. शीर्ष के सभी बल्लेबाजों ने गैर जिम्मेदाराना तरीके से अपने विकेट गंवाएं. कुछ को छोड़कर किसी में भी किसी तरह की कोई गंभीरता नहीं दिखी. दूसरी ओर आस्ट्रेलिया के गेंदबाजों और क्षेत्ररक्षकों ने खेल में जी-जान लगा दिया. अतिरिक्त रनों पर अंकुश लगा कर रखा और गिर-पड़के भी कई चौके बचाकर भारत पर सफलतापूर्वक दबाव बनाया. लेकिन भारतीय खिलाडियों में इसका एक बार फिर से अभाव नज़र आया. आस्ट्रेलिया को एक लड़ने वाला लक्ष्य देकर भी गेंदबाज और क्षेत्ररक्षक आस्ट्रेलिआई बल्लेबाजों पर ज्यादा दबाव नहीं बना सके. हाँ बीच-बीच में विकेट तो गिरते रहें, पर आस्ट्रेलिआई बल्लेबाजों की सधी हुई पारी ने उन्हें संकट से उबारे ही रखा.

इस श्रृंखला में लगातार दो मैच जीतने के बाद और पिछले मैच में विशाल लक्ष्य के काफी करीब तक पहुँचने के बाद भारतीय टीम से फिर से वापसी की उम्मीद लगाई जा रही थी. पर उन्होंने इसे फिर से झूठला दिया. खेल में अक्रात्मकता का पूरी तरह से अभाव नज़र आया. ऐसा लगा जैसे पिछले मैच में इतना बड़ा लक्ष्य के पास पहुँचने के जोश में वे इस मैच में अपना होश गवां बैठे.

महेंद्र सिंह धोनी भारत के सफलतम कप्तानों में से एक हैं. वे खुद भी एक अच्छे बल्लेबाज हैं. उनके पास शायद आज तक की सबसे मजबूत और लायक टीम है. इस टीम के साथ खेलकर मैच कैसे जीतना है, इस बात का फैसला उन्हें करना है. ऐसी योजना बनानी है जो कि वास्तव में कारगर साबित हो. इसके साथ-साथ खिलाडियों को जरुरत है अपने पिछले प्रदर्शन पर निगाह डालते हुए पिछली गलतियों को सुधारने की. टीम मैच तभी जीत सकती है, जब खिलाडी खुद से पहले देश के लिए खेलना सीखें. एक और बात, सफलता से उत्साहित होना अच्छी बात है. पर जोश में होश खोने में भला कहाँ की बुद्धिमानी है?

संपर्क: shaileshfeatures@gmail.com

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